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ग़ज़ल - मैं एक विद्रोही मैं इन्सां हूँ..........


मैं इक विद्रोही इन्सां हूँ, हाँ..........मैं, कोई चोर नहीं हूँ |
ज्वाला है मेरी आँखों में, मैं....दुर्बल - कमज़ोर नहीं हूँ ||

मैंने जो भी कड़वा - मीठा, देखा - भोगा, कह डाला है,
जीवित मानव हूँ आखिर मैं.......कोई मुर्दा दौर नहीं हूँ ||

मैंने ये शिक्षा पायी है........सिद्धांतों के लिये जिऊँगा,
जो बसंत को बहलाने को, नाचे........मैं वो मोर नहीं हूँ ||

मुझे पाप के झंझावातों..... से भाता है...... लोहा लेना,
आँधी - पानी जिसे मिटा दे.....मैं वो दुर्बल बौर नहीं हूँ ||

दुर्बलतायें और बुराई, बस कर जहाँ.......मनायें मंगल,
मैं ऐसे कलंक की खातिर.......खाली कोई ठौर नहीं हूँ ||

मेरा गुण मेरा स्वभाव है- विकृत व्यवस्था से टकराना,
लक्ष्य- मनुजता का पथ मेरा... इन्सां हूँ मैं ढोर नहीं हूँ ||

संकट के ये खंजर, जिसके तानों को...खंडित कर पायें,
मैं, ऐसे कच्चे धागों की...........कोई कच्ची डोर नहीं हूँ ||

दानवता के दंश भले ही... मुझे चबाकर कर खाना चाहें,
किन्तु मुझे पूरा यकीन है- मैं.. भोजन का कौर नहीं हूँ ||

जब भी और जहाँ भी मुझको सच और न्याय पुकारेगा,
मुझे वहीं पर पाओगे तुम.... मैं केवल एक शोर नहीं हूँ ||

ईश्वर जितनी मुझे रौशनी देगा.............मैं, सबमें बाँटूँगा,
कोई छाया जिस प्रकाश को,ढँक ले, मैं वो भोर नहीं हूँ ||

रचनाकार - अभय दीपराज
सम्पर्क - 9893101237

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